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किडनैपिंग या लव जिहाद, उत्तरकाशी में 21 दिन से तनाव:BJP लीडर समेत 30 मुस्लिम परिवारों ने शहर छोड़ा

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                                                                                                                                                            ‘मैं पुरोला के लोगों के बीच ही पला-बढ़ा। यहीं पढ़ाई की, यहीं मेरे दोस्त हैं। ये मेरी कर्मभूमि रही है, पर आज पुरोला के लोगों ने हमें बाहर निकाल फेंका। रोज साथ उठने-बैठने वालों ने ही हमारी दुकानों के बैनर फाड़ दिए। अब हमारा मन खट्टा हो गया है। अब पुरोला लौटने की इच्छा नहीं है।’

ये जाहिद मलिक हैं। उत्तरकाशी जिले के BJP अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष। पुरोला में रहते थे, जहां अभी मुस्लिमों को बाहर निकालने के लिए अभियान चल रहा है। पूरा मामला 26 मई से शुरू हुआ, जब 14 साल की एक लड़की के साथ मुस्लिम युवक उबैद और उसके दोस्त जितेंद्र सैनी को पकड़ा गया। दोनों पर मुकदमा दर्ज हुआ और उन्हें जेल भेज दिया गया।

विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल ने लव जिहाद का मामला बताया और लोकल दुकानदारों के साथ मिलकर मुस्लिमों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 15 जून को पुरोला में महापंचायत भी बुलाई गई थी। शहर में पोस्टर लगाए गए कि इस तारीख तक ‘लव जिहादी’ अपनी दुकानें खाली कर दें।

15 जून को होने वाली महापंचायत की वजह से पुरोला का मार्केट बंद रहा। लव जिहाद से होते हुए ये मामला हिंदू-मुस्लिम व्यापारियों की लड़ाई में बदल गया, इसलिए दुकानों के सामने पुलिस की तैनाती की गई।
15 जून को होने वाली महापंचायत की वजह से पुरोला का मार्केट बंद रहा। लव जिहाद से होते हुए ये मामला हिंदू-मुस्लिम व्यापारियों की लड़ाई में बदल गया, इसलिए दुकानों के सामने पुलिस की तैनाती की गई।

प्रशासन ने धारा-144 लगा दी, तो महापंचायत टाल दी गई। हम 15 जून को ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से उत्तरकाशी और फिर पुरोला के लिए निकले। उत्तरकाशी से पुरोला की दूरी करीब 110 किमी है। रास्ते पर जगह-जगह पुलिस की मौजूदगी, बैरिकेडिंग, चेकपोस्ट और हर गाड़ी की तलाशी से पता चल गया कि माहौल अच्छा नहीं है। मसूरी के रास्ते कंडी, नौगांव होते हुए हम पुरोला पहुंचे, तब शहर में धारा-144 लगी हुई थी।

पुरोला में पुलिस लगातार फ्लैग मार्च कर रही है। हालांकि, प्रशासन का दावा है कि हालात अब कंट्रोल में हैं।
पुरोला में पुलिस लगातार फ्लैग मार्च कर रही है। हालांकि, प्रशासन का दावा है कि हालात अब कंट्रोल में हैं।

किडनैपिंग की कोशिश का केस लव जिहाद में बदला
लड़की के पिता ने पुलिस को दी शिकायत में बताया है कि 26 मई को दोपहर करीब 3 बजे फोन आया कि दो लड़के टेम्पो से आपकी बेटी को ले जाने की फिराक में हैं। फोन करने वाला उनकी पहचान का था और मौके पर पहुंच गया। उसे देखकर दोनों लड़के भाग गए। बेटी ने बताया कि लड़कों के नाम उबैद और जितेंद्र है। उबैद ने पहले अपना नाम अंकित बताया था। दोनों आरोपी UP के रहने वाले हैं।

इस घटना के बाद से ही पुरोला में तनाव है। 30 मुस्लिम परिवार शहर छोड़कर चले गए हैं। 26 मई के बाद से एक भी मुस्लिम दुकानदार ने दुकान नहीं खोली है। हालांकि, मामले की जांच में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि ‘लड़की उन लड़कों को नहीं जानती थी। अब तक की जांच में लव जिहाद जैसा कोई एंगल नहीं आया है।’

पुलिस के मुताबिक, घटना के तुरंत बाद दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। उनके खिलाफ IPC की धारा 363 (किडनैपिंग), 366 ए (नाबालिग को अगवा करने) के अलावा पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। फिलहाल दोनों आरोपी न्यायिक हिरासत में हैं।

दुकानों पर ताला, शहर में सन्नाटा, धारा 144 के बावजूद जुटे बजरंग दल के कार्यकर्ता
विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने घटना के विरोध में 15 जून को महापंचायत बुलाई थी। दावा किया गया कि इसमें उत्तराखंड के अलग-अलग इलाकों से हजारों लोग आएंगे। प्रशासन ने इससे पहले ही शहर में धारा-144 लगा दी।

पुरोला शहर में घुसते ही हमें सैकड़ों पुलिसवाले मेन मार्केट में फ्लैग मार्च करते दिखे। मार्केट की सभी दुकानों पर ताला और शहर में सन्नाटा था। 15 जून को दोपहर करीब 12 बजे पुरोला के सबसे बड़े मैदान में भीड़ जुट गई। महापंचायत इसी मैदान में होनी थी। खुद को बजरंग दल कार्यकर्ता बता रहे करीब 25-30 लोग धारा-144 लागू होने के बावजूद नारेबाजी करने लगे। पुलिस और प्रशासन की गाड़ियां भी आ गईं, पर प्रदर्शन कर रहे लोगों को न रोका गया, न हटाने की कोशिश हुई।

पुरोला में धारा 144 लागू होने के बावजूद 15 जून को मैदान में जुटी भीड़। धारा-144 19 जून तक लागू रहनी थी, लेकिन महापंचायत टलने के बाद इसे 16 जून को ही हटा लिया गया।
पुरोला में धारा 144 लागू होने के बावजूद 15 जून को मैदान में जुटी भीड़। धारा-144 19 जून तक लागू रहनी थी, लेकिन महापंचायत टलने के बाद इसे 16 जून को ही हटा लिया गया।

भीड़ में सबसे आगे विकास वर्मा खड़े थे। देहरादून के रहने वाले हैं और भगवा वस्त्र पहनते हैं। माथे पर तिलक, दाढ़ी बढ़ी हुई। विकास बजरंग दल के प्रांत साप्ताहिक मिलन प्रमुख हैं।

विकास कहते हैं- ‘प्रशासन ने धारा-144 लगाई हुई है, फिर भी हमने अपना कार्यक्रम किया है। हमारी बहन-बेटियों के खिलाफ लव जिहाद का षड्यंत्र किया जा रहा है। महापंचायत का उद्देश्य इस पर रोक लगाना है। देवभूमि को अपवित्र करने के लिए अवैध तरीके से मजारें और मस्जिदें बनाई जा रही हैं।’

हमने पूछा कि पुलिस की जांच में तो अब तक लव जिहाद का एंगल सामने नहीं आया है, तो फिर आप कैसे दावा कर रहे हैं? विकास ने जवाब दिया, ‘इस देश में जांच कभी पूरी नहीं होती। जांच का इंतजार करेंगे, तो हालात काबू से बाहर हो जाएंगे।’

पुरोला में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह रावत भी महापंचायत के लिए पहुंचे थे। वे कहते हैं कि ‘हिंदू समाज ने महापंचायत बुलाई थी, प्रशासन ने धारा-144 लगाकर हमारे आंदोलन को कुचलने की कोशिश की है।’

भीड़ बढ़ती जा रही थी। एक घंटे में करीब 50 लोग मैदान में जुट गए। मौके पर मौजूद SDM देवानंद शर्मा हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं को नारेबाजी करते देखते रहे। ये सब करीब 1 घंटे तक चला। इसके बाद SDM ने प्रदर्शन कर रहे लोगों से ज्ञापन लिया।

हमने SDM से पूछा कि धारा-144 लगी है, तब भी आप इतने लोगों को इकट्ठा करके ज्ञापन ले रहे हैं, ये कैसी सख्ती है? जवाब में SDM देवानंद शर्मा कहते हैं- ‘कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए हमने 15 जून को पुरोला में धारा-144 लगाई है। व्यापारियों ने शांतिपूर्ण बंद सुनिश्चित किया है, ग्राउंड पर हालात पूरी तरह से काबू में है।’

मुस्लिम परिवार 30-40 साल से रह रहे थे, अब देहरादून शिफ्ट हुए
जाहिद मलिक को पुरोला शहर में रहते हुए 30 साल से ज्यादा हो गए। सबसे पहले जाहिद के बड़े भाई अब्दुल यहां आकर बसे। वे कपड़े सिलने का काम करते थे। 18 साल से जाहिद रेडीमेड कपड़ों का व्यापार कर रहे थे।

जाहिद ने 6 साल पहले BJP की सदस्यता ली और अभी उत्तरकाशी जिले में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष हैं। 26 मई के बाद पुरोला में माहौल खराब हुआ, तो जाहिद ने 4 लोगों के परिवार के साथ घर छोड़ दिया। दुकान खाली की और देहरादून शिफ्ट हो गए।

जाहिद की तरह ही अशरफ खान का पुरोला से पुराना नाता है। उनकी यहां दो दुकानें हैं। एक रेडीमेड कपड़ों की, दूसरी रजाई-गद्दे की। अशरफ की पैदाइश पुरोला की ही है। अशरफ जोर देते हुए कहते हैं कि मैंने RSS वाले सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल से पढ़ाई की है।

अशरफ के पिता बाले खान साल 1978 में बिजनौर के एक गांव से आकर पुरोला में बसे थे। उस वक्त बाले खान की उम्र करीब 20 साल थी। वे रुई की धुनाई और गद्दे बनाने का काम करते थे। उनका कारोबार चल निकला, तो यहीं घर भी बनवा लिया। अशरफ ने पिता के कारोबार को ही आगे बढ़ाया। अशरफ अभी पुरोला में ही हैं। वे कहते हैं, ‘पुरोला में जो हुआ, उसने हमें हिलाकर रख दिया।’

दीवार पर पोस्टर लगा- दुकान खाली कर दो, मकान मालिक ने खाली करवा ली
पुरोला के मेन मार्केट में शकील एंड संस नाम की दुकान है। इसके मालिक सलीम ने पुरोला छोड़ दिया है और देहरादून चले गए हैं। वहां दोस्त के साथ नया काम शुरू किया है। सलीम के पिता शकील 1980 के आसपास सहारनपुर से आकर पुरोला में बसे थे। शकील ने यहां अपना घर बनवाया, लेकिन व्यापार किराए की दुकान में ही चल रहा था।

वे कहते हैं, ’मेरे पास जानने वाले 2-3 लोग आए और कहने लगे कि यहां हालात ठीक नहीं हैं, तुम्हें शहर छोड़कर जाना पड़ेगा। मैंने कहा कि हम तो बचपन से यहीं रह रहे हैं, हम क्यों जाएंगे। 29 मई को बहुत बड़ी रैली निकली, जिसके बाद मेरे बच्चे और बीबी बहुत ज्यादा डर गए। हमारी दुकान के बाहर पोस्टर भी लगाए गए, जिनमें लिखा था कि 15 जून से पहले दुकानें खाली कर दो। ’