मुलतानी न्यूज़ इंडिया

Breaking News

गुजरात नहीं भूल पाएगा 25 साल पुराना वो चक्रवात:कपड़ों की तरह लटक रही थीं लाशें, डीजल से किया गया अंतिम संस्कार

Facebook
Twitter
WhatsApp
Telegram
9 जून 1998,उस दिन गर्मी थोड़ा हल्की पड़ने लगी थी। गुजरात के कांडला पोर्ट में लोग अपने रूटीन कामों में लगे थे। दोपहर होते-होते हालात बदलने लगे। पहले 150 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं और थोड़ी देर में इनकी स्पीड 160 से 180 किमी प्रति घंटे पर पहुंच गई। अरब सागर में कम दबाव के चलते बने चक्रवात ने कांडला में हिट किया था।

मरने वालों की आधिकारिक संख्या 1,485 थी। 1,700 लोग लापता बताए गए, जो आज भी लापता हैं। इसके साथ 11 हजार से ज्यादा पशुओं की मौत हुई। इस चक्रवात से मची तबाही की भयावहता इन आंकड़ों से कहीं ज्यादा थी। 15 जून 2023 को गुजरात में एक बार फिर चक्रवात हिट करने वाला है तो 25 साल पुरानी कहानी याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं साथ ही सरकार के मिस-मैनेजमेंट पर भी सवाल खड़े करते हैं।

सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार विपुल वैद्य बता रहे हैं उस वक्त का आंखो-देखा हाल…

वरिष्ठ पत्रकार विपुल वैद्य ने कांडला पोर्ट पर आए विनाशकारी चक्रवात की रिपोर्टिंग की थी।
वरिष्ठ पत्रकार विपुल वैद्य ने कांडला पोर्ट पर आए विनाशकारी चक्रवात की रिपोर्टिंग की थी।

अरब सागर में लो प्रेशर एरिया बना था। इसके पोरबंदर और द्वारका से टकराने का अनुमान लगाया गया था। वहां टकराने के बाद इसकी स्पीड बढ़ गई और ये कच्छ का रण पार करके कांडला पोर्ट में लैंडफॉल हुआ। कांडला के लोग और प्रशासन इसके लिए तैयार नहीं थे।

गांधीधाम के रामबाग सरकारी अस्पताल में लाशों के ढेर लग गए थे। लॉबी में, आंगन में, हर तरफ शव कतारों में पड़े हुए थे। इनमें बच्चों की मृत्यु दर अधिक थी।

कांडला-गांधीधाम के बीच पुल पर बच्चे, पुरुष और महिलाओं की लाशें सूखते कपड़ों जैसे लटक रही थीं।

तूफान कितना भयानक था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1 अगस्त तक लाशें मिलती रही थीं। कुछ शव पाकिस्तान के तट पर भी पाए गए थे।

कांडला से जब अचानक तूफान टकराया तो लोग जान बचाने के लिए बंदरगाह में पड़े कंटेनरों पर चढ़ गए, लेकिन तूफान इन कंटेनरों को ही अपने साथ उड़ाकर समुद्र में ले गया। इस तरह पोर्ट पर ही सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। मौतों के सही आंकड़ों के सामने न आने का एक कारण यह भी था।

हवा की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि ये विशाल जहाज भी समुद्र छोड़कर किनारे पर चढ़ गया।
हवा की रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि ये विशाल जहाज भी समुद्र छोड़कर किनारे पर चढ़ गया।

कांडला गांधीधाम परिसर में केवल एक ही श्मशान था और यहां कोई आधिकारिक कब्रिस्तान भी नहीं था। श्मशान में जब इतने सारे शव पहुंचे तो हालात बद से बदतर हो गए। इसके चलते शवों को प्लास्टिक में लपेट कर एक जगह इकट्ठा कर किया गया था। श्मशान के आसपास खाली जगहों पर पेट्रोल और डीजल छिड़ककर जलाया गया। इस दौरान भी हवा इतनी तेज थी कि शवों की हड्डियां समुद्र से लेकर हाईवे तक पर बिखर गई थीं।

इस तूफान में छोटी-मोटी चीजों की बात तो दूर, विशालकाय जहाज से लेकर बार्ज और पोर्ट की महाकाय क्रेनें भी तबाह हो गई थीं। रेल की पटरियां उखड़ गई थीं और कच्छ में 15,000 बिजली के खंभे गिर गए थे। इसके चलते भुज सहित पूरे कच्छ में करीब तीन महीनों तक ब्लैकआउट रहा था।

तबाह घर-गृहस्थी के बीच बैठे परिवार
तबाह घर-गृहस्थी के बीच बैठे परिवार

पेट्रोल पंपों के बर्बाद होने से पेट्रोल-डीजल की सप्लाई भी बंद हो गई थी। तूफान आने के दूसरे दिन भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल कांडला पहुंचे। इसके अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर छोटे-बड़े कई नेताओं का गुजरात आना-जाना लगा रहा।

गैस रिसाव की अफवाह से 15 हजार मजदूर पलायन कर गए थे

तूफान दो घंटे बाद चला गया तो इसके बाद अफवाहों का दौर भी शुरू हुआ। एक अफवाह जहरीली गैस के रिसाव की भी फैली, जिसके चलते मजूदूर परिवारों का पलायन शुरू हो गया। देखते ही देखते कांडला पोर्ट और गांधीधाम से करीब 15,000 मजदूर पलायन कर गए थे।

ट्रेन और अन्य यातायात बाधित होने के चलते हजारों मजदूर पैदल ही चल दिए थे। हद तो यह भी हो गई थी कि कई परिवार लाशें ले जा रही गाड़ियों में सवार थे। बस वे किसी तरह जहरीली गैस से अपनी जान बचाना चाहते थे। ये मजदूर महीनों तक नहीं लौटे थे। चक्रवात पीड़ितों के लिए कांडला, गांधीधाम में कई राहत शिविर खोले गए। सबसे बड़ा राहत शिविर कांग्रेस का था। विपक्ष की नेता सोनिया गांधी भी पीड़ितों से मिलने पहुंची थीं।

पीके लहेरी, पूर्व मुख्य सचिव, गुजरात से जानिए उस दिन की त्रासदी…

पूर्व मुख्य सचिव पीके लहेरी
पूर्व मुख्य सचिव पीके लहेरी

चक्रवात वास्तव में कांडला पहुंचने से पहले कमजोर पड़ गया था, लेकिन जब उसने जोड़ीया से कच्छ की खाड़ी में प्रवेश किया तो खाड़ी की गर्मी के कारण इसकी गति बढ़ गई। इसके चलते तूफान भयानक रफ्तार से कांडला पोर्ट से टकराया था।

गलतफहमी उस समय हो गई, जब यह सुना गया कि तूफान कमजोर हो गया है। लोगों ने सोचा कि अब ज्यादा खतरा नहीं है। उस समय मोबाइल फोन की सुविधा तो थी नहीं। लैंडलाइन फोन भी कम थे। सैटेलाइट फोन से थोड़ी बहुत जानकारी ही मिल पाती थी। इसी के चलते किसी को संभलने का मौका नहीं मिला।

1998 में आए चक्रवात का रूट मैप। साफ दिख रहा है कि चक्रवात ने अपना रास्ता मोड़ लिया था।
1998 में आए चक्रवात का रूट मैप। साफ दिख रहा है कि चक्रवात ने अपना रास्ता मोड़ लिया था।

बचाव अभियान कैसा था?

करीब एक महीने तक कांडला के पास टापू पर लाशें पहुंचती रहीं। दर्जनों शव तो समुद्र में तैरते हुए मांडवी के तट तक पहुंच गए थे। आपदा प्रबंधन नहीं था। तूफान के बाद तटों पर कीचड़ हो गई थी। स्थानीय लोगों ने कीचड़ में खोजबीन कर सैकड़ों लाशें निकालीं।

सरकारी सुविधाएं कैसी थीं?

एसआरपी रेस्क्यू ऑपरेशन कर रही थी। इसके अलावा भारत सरकार की दो से तीन बटालियन और नेवी भी आई थी। इसरो ने भी रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए अंतरिक्ष से तस्वीरें मुहैया करवाई थीं।

कितनी मौतें हुई होंगी?

उस आपदा में 2,300 से ज्यादा लोग मरे थे। मुख्य रूप से कांडला, गांधीधाम में हताहत हुए थे। जामनगर के पास दो या तीन जहाज भी डूब गए थे। इसमें कितने लोगों की संख्या थी। इसका सही अंदाजा नहीं पता चल पाया।

मौत का सही आंकड़ा आज तक नहीं पता चल सका, क्योंकि कई लोग समुद्र में डूब गए। कई दिनों तक लाशें मिलती रही थी।
मौत का सही आंकड़ा आज तक नहीं पता चल सका, क्योंकि कई लोग समुद्र में डूब गए। कई दिनों तक लाशें मिलती रही थी।

इसके अलावा कच्चे मकान व पेड़ों के गिरने, करंट लगने से भी कई मौते हुईं। मरने वालों में ज्यादातर पर प्रांतीय मजदूर थे, जो कांडला और गांधीधाम पोर्ट में काम करते थे। ज्यादा तबाही भी पोर्ट एरिया में ही हुई थी। इसी के चलते ये लोग तूफान की चपेट में आ। इस आपदा में तकरीबन ढाई हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।

चेतावनी नहीं दे सकते थे तो पर्याप्त कदम क्यों नहीं उठाए गए?

सूचना पहले सही मिली थी कि तूफान 200 किमी की स्पीड से आगे बढ़ रहा है। बाद में इसके कमजोर पड़ने की बात भी सही थी। लेकिन, कमजोर होने के बाद तूफान फिर से रफ्तार पकड़ लेगा, इसका अंदाजा किसी को नहीं ती। अमूमन ऐसा होता भी नहीं है। सरकार ने भी मान लिया था कि तूफान कमजोर हो गया है। लेकिन तूफान ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि उसे कांडला व गांधीधाम पोर्ट तक पहुंचने में मात्र 20 से 25 मिनट का समय ही लगा। इस आपदा से सरकार ने भी सबक लिया। इसके करीब 11 महीनों बाद भी एक तूफान आया था, लेकिन अलर्ट उसके गुजर जाने के बाद ही वापस लिया गया था।

हालांकि इस बार जब हम तूफान का सामना कर रहे हैं तो एक बात तय है कि तूफान खत्म होने के 12-15 घंटे बाद तक सतर्कता बरती जाए। क्योंकि, चक्रवात की गर्मी हवा में होती है। इससे समु्द्र का पानी अवशोषित होने लगता है और तूफान की रफ्तार दोबारा बढ़ जाती है।

अर्जुन मोढवाडिया, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बता रहे कि कहां चूक हुई…

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोढ़वाडिया
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोढ़वाडिया

उस समय जो हालात थे, उससे साफ है कि सरकार सो रही थी। इतना ही नहीं, उस समय कितने लोगों की मौत हुई, सरकार के पास तो इसकी भी पर्याप्त जानकारी नहीं थी। मैं क्षेत्रीय समिति के महासचिव के रूप में काम कर रहा था और सीडी पटेल अध्यक्ष थे।

पोरबंदर में एक इमारत गिरने से 5 लोगों की मौत, बाजार में बिजली के खंभे और पेड़ गिरे सवाल यह था कि नगर पालिका काम करे या सरकार। सरकार कहती है कि नगर पालिका काम करेगी और नगरपालिका कहती है कि हमारे पास बमुश्किल सफाई के उपकरण हैं। उस समय हमने बाहर से बड़ी मशीनरी मंगवाई और खंभे हटा दिए, पेड़ हटा दिए।

उस वक्त इस मामले में काफी लापरवाही बरती गई थी और कई लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना को 25 साल से ज्यादा हो गए हैं, इसलिए मैं आंकड़ों में नहीं पड़ना चाहता। लेकिन मौतें आंकड़ों से कहीं ज्यदा थी।

सुरेश मेहता, पूर्व मुख्यमंत्री, गुजरात का मानना है कि ये तबाही रोकी नहीं जा सकती थी…

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता
गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता

आरोप लगाने वाले तो आरोप लगाएंगे। हमें अंदेशा था कि तूफान आने वाला है। सबसे पहले हमें लोगों के रहने, खाने-पीने और सुरक्षा की व्यवस्था करनी थी और हमने वह सब कुछ पहले ही कर लिया था। तूफान इतनी तीव्रता का था कि नुकसान बहुत ज्यादा हुआ। सरकार पीड़ितों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रही।

तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीडी पटेल ने 10 हजार मौतों का दावा किया था मृतकों की संख्या 10 हजार नहीं थी। हां, किसी टापू पर एक-दो लाशें जरूर मिली होंगी, लेकिन यह हजारों में नहीं थीं। हो सकता है आरोप सिर्फ आरोप लगाने के लिए लगाया गया हो।

तूफान ही ऐसा था, जिसे रोका नहीं जा सकता था। आप कहना चाहें तो कह सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। जो तत्काल कार्रवाई की गई वह प्रशंसनीय थी, क्योंकि यह इतनी जल्दी कभी नहीं हुई थी। हमारी मेहनत की काफी सराहना हुई थी।

चक्रवात बिपरजॉय से जुड़ा ये एक्सप्लेनर भी पढ़ें-

बिपरजॉय की रफ्तार थोड़ी घटी, लेकिन अभी भी 157 किमी/घंटा:गुजरात में तबाही लाएगा, अन्य राज्यों में कैसा असर; 10 जरूरी जवाब

Leave a Comment