मुस्लिमों की एक ऐसी जमात, जिनका विरोध उनके ही धर्म के लोग करते हैं। जालीदार टोपी, खुली दाढ़ी, टखनों तक पायजामा और ढीला कुर्ता, इनकी पहचान है। इन्हें अल्लाह मियां की फौज कहते हैं। ये कई-कई दिन, कई-कई महीने या पूरे साल गश्त पर रहते हैं। इनका एक ही नारा है- अपनी जान, अपना सामान।

ये तबलीगी जमात के लोग हैं। कोरोना के दौरान इनका नाम खूब चर्चा में रहा। आज पंथ सीरीज में कहानी इसी तबलीगी जमात की…
सुबह 7 बजे का वक्त। जगह दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन में दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामिक संस्था तबलीगी जमात का मरकज यानी हेडक्वार्टर। दुनियाभर में कहीं आने-जाने से पहले लोग इसी मरकज में आते हैं।
गुलाब के फूलों की लड़ियां, इत्र, दातून, सुरमा और जालीदार टोपियां दुकानों पर सजी हैं। बिरयानी की खुशबू मुझे अपनी तरफ खींच रही है। शाही टुकड़ा और शीरमाल परोसा जा रहा।
सफेद रंग की 7 मंजिला इमारत में अंदर जाने के लिए दो दरवाजे हैं। एक दरवाजे पर काफी चहल-पहल है। लोग अंदर आ रहे हैं, बाहर जा रहे हैं। दूसरे दरवाजे पर इक्का-दुक्का लोग ही नजर आ रहे हैं।
हजरत निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का 7 मंजिला हेडक्वार्टर।
हजरत निजामुद्दीन में तबलीगी जमात का 7 मंजिला हेडक्वार्टर।
मैं दूसरे दरवाजे से अंदर जाने की कोशिश करती हूं। सामने तीन मौलाना मिलते हैं। मैं उनसे बताती हूं कि मुझे तबलीगी जमात पर स्टोरी करनी है। उसी सिलसिले में यहां के किसी बड़े सदर (अधिकारी) से बात करना चाहती हूं।
उन्होंने मुझसे पूछा- आप अकेली आई हैं या कोई मेल रिपोर्टर भी आपके साथ आया है?
मैंने जवाब दिया- मैं अकेली ही आई हूं।
उधर से जवाब मिला- फिर लौट जाइए आप… मरकज में महिलाएं न तो अकेले आ सकती हैं और न ही किसी से बात कर सकती हैं। किसी मेल रिपोर्टर के साथ आइएगा।
भारत में मुख्य रूप से तीन इस्लामिक जमात हैं। जमात ए इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा ए हिंद और तबलीगी जमात। बाकी दोनों जमातों में महिलाएं कामकाज के सिलसिले में अकेले आती-जाती हैं, लेकिन तबलीगी जमात के ऑफिस में अकेली महिला नहीं आ सकती।
जमात के ऑफिस के बाहर एक गन्ने के जूस वाले की दुकान है। कुछ देर के लिए मैं दुकान पर बैठ जाती हूं और यहां आ-जा रहे लोगों की एक्टिविटी समझने की कोशिश करती हूं।
कुछ लोग ई-रिक्शा में सवार होकर यहां आ रहे हैं, कुछ लोग ऑटो में बैठकर तो कई लोग पैदल। मैंने दुकानदार से पूछा कि हर दिन यहां कितने लोग आते होंगे? दुकानदार ने बताया- इसकी गिनती मुश्किल है। सैकड़ों लोग हर दिन यहां आते-जाते हैं।’
इस मरकज में हर दिन सैकड़ों लोग आते-जाते हैं।
इस मरकज में हर दिन सैकड़ों लोग आते-जाते हैं।
मेरे पास तबलीगी जमात के बारे में एक किताब ‘इनसाइड द तबलीगी जमात’ थी। मैं दुकान पर बैठकर किताब पढ़ने लगी। कुछ देर बाद 15-16 साल के युवकों का एक ग्रुप दुकान पर आया।
मैंने उनसे पूछा- आप लोग कहां के रहने वाले हो?
जवाब मिला- बागपत के।
कितनी उम्र का व्यक्ति जमात से जुड़ सकता है?
15 साल की उम्र से लेकर किसी भी उम्र तक का।
मैं उन युवकों से पूछती हूं कि तबलीगी जमात कैसे काम करती है?
पहले वे असहज हो जाते हैं। फिर जब मेरी हाथ में जमात से जुड़ी किताब दिखते हैं, तो बातचीत के लिए तैयार होते हैं।
वे बताते हैं, ‘हम हापुड़ गए थे। अभी वहीं से लौटे हैं। हमारे ग्रुप में एक अमीर होता है। वह ग्रुप का लीडर होता है। हम लोग अपनी हैसियत के मुताबिक घर से रुपए लेकर आते हैं। यहां आने पर हमसे पूछा जाता है कि आप लोग जमात लेकर जाना चाहते हो या काम करके लौटे हो।
अगर हम जमात लेकर जाना चाहते हैं, तो हमसे पूछा जाता है कि आपके पास कितने रुपए हैं। जितनी रकम हमारे पास होती है, उसके मुताबिक हमें रुख यानी डायरेक्शन बताया जाता है कि फलां जगह चले जाइए।
हमारी जमात का एक नारा है- अपनी जान, अपना सामान। इसका मतलब है किसी जगह जाने के लिए खुद ही खर्च उठाना पड़ता है और सुरक्षा भी खुद करनी पड़ती है। जाने से पहले तीन दिन हम मरकज में रहते हैं। इसमें जहां हमें जाना होता है, उस जगह की जानकारी दी जाती है। गश्त के नियम बताए जाते हैं।’
मुस्लिम धर्म गुरु मौलाना खालिद रशीद बताते हैं, ‘यह दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामिक जमात है। 150 देशों में इसके करोड़ों सदस्य हैं।’
मुस्लिम धर्म गुरु मौलाना खालिद रशीद बताते हैं, ‘यह दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामिक जमात है। 150 देशों में इसके करोड़ों सदस्य हैं।’
तबलीगी जमात को लेकर यह भी कहा जाता है कि इन्हें बाकी दुनिया में क्या चल रहा है, उससे कोई मतलब नहीं। यही वजह भी है कि इस्लाम की बाकी संस्थाएं इन्हें बहुत पसंद नहीं करती हैं।
कहा जाता है कि भारत-पाक बंटवारे, बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने, शाहबानो केस, गुजरात दंगा के बाद भी इस जमात पर कोई खास असर नहीं हुआ। इन युवाओं से बातचीत में भी मुझे साफ पता चला कि इन्हें दुनियादारी से कोई मतलब नहीं है।
मैंने युवाओं से पूछा- अभी तो आप लोगों की पढ़ने की उम्र है, घर के लोग मना नहीं करते घूमने से?
हम अल्लाह की बात करने के लिए निकले हैं। घरवाले इसके लिए मना नहीं करते।
आप लोगों की उम्र कम है, लोग आपकी बात मान जाते हैं?
जवाब मिला- दीन और अल्लाह की बातें सबसे बड़ी होती हैं। हम लोग अल्लाह की बातें करते हैं और उनकी बात हर कोई मानता है। चाहे वह छोटा हो या बड़ा।
यहां से जाने पर कहां रुकते हैं, लोगों से क्या कहते हैं?
हम जहां जाते हैं, उस गांव की मस्जिद में रुकते हैं। हम गाँव वालों कि जरिए अपने खर्च से खाने कि व्यवस्था करते हैं। इसके बाद हम घर-घर जाते हैं, लोगों से कहते हैं कि आप मस्जिद आइए, रोज पांच वक्त की नमाज पढ़िए। हम नमाज करने का तरीका सिखाते हैं। जरूरी आयतें याद करवाते हैं। (नमाज के लिए छोटी तीन या एक बड़ी आयत याद करनी होती है।)
बातचीत के बाद इनका ग्रुप मरकज के अंदर चला जाता है।
मुस्लिम धर्म गुरु मौलाना खालिद रशीद बताते हैं, ‘यह दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामिक जमात है। 150 देशों में इसके करोड़ों सदस्य हैं। एक गश्त में आठ से दस लोग होते हैं।
उसमें एक अमीर होता है, वह टीम लीडर होता है। कहीं जाने पर टीम लीडर ही बात करता है और बाकी लोग सुनते हैं। इनकी कोशिश होती है कि कोई नया आदमी इनसे जुड़े और तीन दिनों तक मस्जिद में इनके साथ रहे।’
क्या महिलाएं जमात में शामिल होती हैं?
मौलाना खालिद रशीद बताते हैं, ‘हां महिलाएं जमात में शामिल होती हैं, लेकिन उन्हें अपने पति के साथ मरकज और गश्त में जाना होता है। अकेली महिला को गश्त में जाने की इजाजत नहीं है। गश्त के दौरान बाकी लोग मस्जिद में रुकते हैं, लेकिन महिलाएं गांव में किसी मुस्लिम परिवार के घर में ठहरती हैं।’
क्या मैं गश्त में शामिल हो सकती हूं?
जवाब मिलता है- नहीं।
तब्लीगी जमात पर कोविड के बाद आई किताब ‘इनसाइड द तबलीगी जमात’ के लेखक जिया उस सलाम बताते हैं, ‘यह ऐसी संस्था है, जो कभी कागजों पर काम नहीं करती। इनकी कोई वेबसाइट नहीं है, कोई रजिस्टर नहीं है, कोई लेखा-जोखा नहीं है।
इनके सदस्यों के नाम की कोई सूची नहीं है, ये कभी मीडिया में नहीं जाते हैं, कभी कोई प्रेस नोट जारी नहीं करते हैं। इसके बाद भी पूरी दुनिया में इनके समागम या सालाना मीटिंग्स होती हैं।
बांग्लादेश के बाद भारत के भोपाल में तबलीगी जमात का सबसे बड़ा समागम (इश्तिमा) होता है।
कौन क्या करेगा, कहां जाएगा, क्या नहीं करेगा… पूरी दुनिया के तबलीगी जमात में यह बात जुबान से ही फैलाई जाती है। इसका मैनेजमेंट हमें बताता है कि आज के हाईटेक युग में भी 1920 के दशक की तरह काम कैसे किया जा सकता है।
हालांकि इस जमात के ज्यादातर लोग गरीब परिवारों से हैं। वे अशिक्षित हैं। इसके चलते कई लोगों का शोषण भी हो जाता है।’
आम मुसलमान कुरआन और हदीस पढ़ते हैं। (हदीस पैगंबर मोहम्मद की उन बातों का संग्रह है, जो उन्होंने सहाबा (पैगंबर के सहयोगी) से उनके किसी सवाल के जवाब में कही थीं।), लेकिन इस जमात के लोग कुरआन के अलावा फजाइल-ए-अमाल को भी तरजीह देते हैं। जबकि बाकी मुसलमानों के लिए जो है वो कुरआन है।
इसकी बड़ी वजह यह है कि कुरआन अरबी लैंग्वेज में है, ज्यादातर लोग इसे समझ नहीं पाते। इसलिए कुरआन की कुछ आयतों को ट्रांसलेट करके फजाइल-ए-अमाल में शामिल किया गया है।
तबलीगी जमात क्यों बनी और कैसे?
इस्लामिक स्कॉलर और जमात ए इस्लामी हिंद के सचिव सैय्यद तनवीर अहमद बताते हैं, ‘बीसवीं सदी की शुरुआत में स्वामी दयानंद सरस्वती, हिंदू धर्म में वापसी का अभियान चला रहे थे। दूसरी तरफ कई ऐसे मुसलमान थे, जो हिंदू धर्म से आए थे और इस्लाम को ठीक से फॉलो नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि उन्हें इस्लाम के बारे में जानकारी नहीं थी।
ऐसे लोगों को इस्लाम के बारे में शिक्षित करने के लिए मुहम्मद इलियास कांधलवी ने 1927 में तबलीगी जमात की शुरुआत की। तबलीगी का मतलब अल्लाह का संदेश होता है। जबकि जमात का मतलब लोगों का समूह। यानी एक ऐसा समूह जो अल्लाह के संदेशों का प्रचार-प्रसार करे।’
तबलीगी जमात कई बार विवादों में रही है। कोरोना के दौरान इन पर कोविड फैलाने का आरोप लगा था। इसके बाद मरकज बंद कर दिया गया था। फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मरकज को खोला गया। 2021 में सऊदी अरब ने भी इस जमात पर बैन लगाया था।